सतगुरु देवी दास के, जगजीवन महाराज कृपा करौ आरती करौ, दीपक जरै समाधि ।
कबहुं निकट ते टारहु नाहिं, निसिवासर मोहिं विसरहु नाहिं ।
दीजे केतिक बात यह कीजे, अधक्रम मेटि सरन कर लीजे ॥
दासन दास हूँ कहौं पुकारी, गुन नहिं मोहि तुम लेहु संवारी ।
जगजीवन दास का आस तुम्हारी, तुम्हरिनि छवि मूरति पर वारी ॥
मन तुम सुमिरौं साध करारी, दीपक वरै नाम उजियारी ।
तन मन सतगुरु कै फुलवारी, महकै केवल भँवर बलिहारी ॥
दुख दाहन सुख मोद बिहारी, सुख निधान जन की रखवारी ।
वारौं सब कछु गर्भ नेबारी, हरौं जनम करम संसारी ॥
प्रभु जगजीवन कृपा तुम्हारी, देवी दास छवि निरिख निहारी